Tuesday, March 6, 2012

सपनों को सपना ही रहने दो ..


 सपनों को सपना ही रहने दो ..


जब जो सोचा, न पाया हमने 
कैसा ये  दस्तूर, निभाया हमने 
न गिला है जब कोई हमें तो 
अब बसंत क्यूँ अपनाया हमने.. 


कैसी है ये अजब जिंदगानी 
रंग बिरंगी गजब दीवानी 
खेल रही है आँख-मिचोनी 
आँखों से ये रोक के पानी..


न हँसते बनता है न रोते ही अब 
ख्वाहिशें जब पूरी होती  हैं
ख्वाहिशों की ही आदत है 
सपने संजोना ही इबादत है..


लहरों को साहिल से टकराने दो 
कभी किनारों से न मिलने दो 
सपनों को सपना ही रहने दो 
आँखों को यूँ ही भरने दो..


न हकीकत रास आती है हमें 
जीने का बहाना हमसे मत छीनो
हकीकतें  डरा जाती  हैं  कुछ ऐसे
सपनों की दुनिया में ही विचरने दो..


सपनों को सपना ही रहने दो 
इन सपनों को हमसे मत छीनो ..






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