Wednesday, March 28, 2012

कुछ तो बता..


कहाँ ले चला है रे मन तू 
कुछ तो बता..


अनजानी डगर अनजाना नगर 
किसने दिया है भला अपना वास्ता 


बिना कहे तू क्यूँ जाये उस जगह 
जहाँ से न तेरा कोई दूर-दूर तक है वास्ता 


भटक न जाना कहीं खो न जाना कहीं 
कोई न है तेरा तुझे खुद ही संभालना है 

राह नयी है मंजिलों का पता नहीं 
कशमकश में कहीं बह न जाना तू 


संभलना ज़रा नाजुक हैं मोड़ 
बिखरने का डर है छिटकने का सफ़र है 


बड़ी मुश्किलें हैं न कोई हमसफ़र है
तुझे अनजानी राहों से गुजरना है 



कहाँ ले चला है रे मन तू 
कुछ तो बता..


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