कहाँ ले चला है रे मन तू
कुछ तो बता..
अनजानी डगर अनजाना नगर
किसने दिया है भला अपना वास्ता
बिना कहे तू क्यूँ जाये उस जगह
जहाँ से न तेरा कोई दूर-दूर तक है वास्ता
भटक न जाना कहीं खो न जाना कहीं
कोई न है तेरा तुझे खुद ही संभालना है
राह नयी है मंजिलों का पता नहीं
कशमकश में कहीं बह न जाना तू
संभलना ज़रा नाजुक हैं मोड़
बिखरने का डर है छिटकने का सफ़र है
बड़ी मुश्किलें हैं न कोई हमसफ़र है
तुझे अनजानी राहों से गुजरना है
कहाँ ले चला है रे मन तू
कुछ तो बता..
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