Monday, February 27, 2012

रूठी याद


जगमग-जगमग, झिलमिल-झिलमिल 
खिल-खिल जाये मन हिलमिल-हिलमिल  
मन में रूठी याद बसी है 
कुछ कहती है, कुछ बुनती है 

बैठ मुंडेर पे कूक रही थी इक कोयलिया 
गाये कौन सा गीत जाने कौन संवरिया 

भूली बिसरी यादों से न नाता रखना
मीठी मीठी बातों से मन को बहलाना 

जाने कब कौन दिसा से आ जाये संदेसा 
बोलों की बरसातों में मैं इक हूँ खिलौना 

रातों में घूमा करती है, सपनों को ढूँढा करती है 
खो कर भी कब कौनसा सपना बन जाये अपना 

न जाने किन अधरों की मुस्कानों में खिला करती है 
बस रूठी है, कुछ कहती है, कुछ बुनती है 

कुछ केले के पत्तों पर, कुछ मिटटी की धड़कन पर
कुछ भीगी सी पलकों पर, सिमटी सी सिसकी बैठी है 

जगमग-जगमग, झिलमिल-झिलमिल 
खिल-खिल जाये मन हिलमिल-हिलमिल  
मन में रूठी याद बसी है 
कुछ कहती है, कुछ बुनती है 

-सीमा 'सोनल' 

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